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आशीष / नवनीत पाण्डे
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तुमने आशीषा
मैं सुखी और खुश रहूं सदा
मैं कृतार्थ बावला सा
देखता भर रहा
अपने सर पर झुका
तुम्हारा नेह भरा हाथ
बिना ये जाने
तुम!
मात्र अपनी छद्मता के वाग्जाल में
मेरे यथार्थ की आंखें मींच रहे हो
झुकी हथेली की छाया में
चेहरा छुपाकर
मेरे अस्तित्त्व की धरती
खींच रहे हो