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फ़ुंकार / नवनीत पाण्डे
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रोज देखता वह नींद में
अच्छे-अच्छे दिन
अच्छी-अच्छी बातें
पर जब भी जागता
देखता-सुनता अपने बाहर-भीतर
सांपों की फ़ुंकार
साफ़ महसूसता
अपने भीतर एक फ़ुंकार