भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धूप की गिलहरी / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:52, 22 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= कुमार रवींद्र |संग्रह=आहत हैं वन / कुमार रवींद्…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बिजली के तारों पर
        बैठे हैं फगुनाए सुग्गे
       पेड़ों से उतर आई लॉन पर
                 धूप की गिलहरी
 
एक फूल गुड़हल का
खिल गया
आँखों के बाग़ में
साँस हुई शहनाई
हरी हुईं इच्छाएँ
कोंपल की बास से
हो गई सुनहरी परछाईं
 
बेंच के किनारे तक
  आ पहुँची धूप-गुलदुपहरी
 
काँटों के बाड़ पर
बिछे हुए यादों के गुलमोहर
हो गए सलौने
बौराए आम के
दरख़्त के नीचे आ बैठे
मन के कस्तूरी मृगछौने
 
उस पर अब
  कोयल-मैनाओं की लग रही कचहरी