भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तो मैं लिखूंगा / नीरज दइया
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:59, 22 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरज दइया |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}<poem>देवता घट में आए फरम…)
देवता घट में आए
फरमाया किसी चूक के विषय में
मच गई हलचल चारों तरफ
देखते ही देखते खुश किए गए ।
आस-पास रहते हुए भी
अपनों से रहते हैं अदृश्य
हमारे देवी-देवता और पितृजन
यदि नहीं दे हम हमारी आवाज
अबोले रह जाएं- उनके शब्द !
मेरे होंठों पर
शब्द हैं मेरी मर्जी के माकूल
मुझे तो मत बांधो
किसी भी आशा से
आशा के टूटने पर
फिर घट में आएंगे देवता
और मैं लिखूंगा-
एक कविता इस पाखंड पर ।
अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा