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जो पत्थर बोलता / राकेश प्रियदर्शी

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जो पत्थर बोलता

तो नहीं गूंजती

आकाश तक चीखें


नहीं होता कोई पैमाना

ऊँचाई और गहराई के बीच,

नहीं जलती अयोध्या

और न टूटती बाबरी मस्जिद


जो पत्थर बोलता

तो नहीं मरती संवेदना

जीवित रहता प्यार

मौत के बाद भी सदियों तक


जो पत्थर बोलता

तो नहीं होती आत्महत्याएं

आर्थिक बदहाली व भूख के कारण


जो पत्थर बोलता

तो नहीं बढ़ता आतंकवाद,

नहीं जलती सारी दुनिया

धू-धू कर नुफरत की आग में


जो पत्थर बोलता

तो हमारा और तुम्हारा

अलग-अलग नहीं होता धर्म