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नदी के इतिहास को परखा / कुमार रवींद्र

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हम नदी की
बात करते रहे पूरी ज़िंदगी-भर

उस नदी की
जो सदाशिव की जटाओं में रही थी
वेणुवन के राख होने की व्यथा
उसने सही थी

महानगरी में
पहुँचकर हो गई थी वही पोखर

नदी ने इतिहास को
परखा-सँजोया पीढ़ियों तक
सीपियाँ उतराईं- चढ़कर आईं
बरसों सीढियों तक

कभी पहले
एक इच्छावृक्ष भी था नदी-तट पर

रात सपने में दिखी
हमको नदी कल -
वह दुखी थी
घाट पर उसके मिली
हाँ, एक टूटी बाँसुरी थी

शाह लौटे हैं
समुंदर की हवाएँ साथ लेकर