भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अहसासों का चौरा दरका / श्यामनारायण मिश्र
Kavita Kosh से
मनोज कुमार (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:56, 23 मई 2011 का अवतरण
अहसासों का चौरा दरका
श्यामनारायण मिश्र
कौन करे दिये-बत्तियां
तुमने जो लिखी नहीं
मैंने जो पढ़ी नहीं
आंखों में तैर रहीं चिट्ठियां
छाती से
सूरज का दग्ध-लाल गोला लुढ़काकर,
अभी अभी बैठा हूं
आंखों के दरवाज़े
पलकें उढ़काकर।
भीतर ही भीतर
लगता है कोई
खोद रहा खत्तियां।
सुबह-शाम
विष की थैली उलटाकर
समय-सांप सरका।
नेह-छोह से तुमने
लीपा था पोता था,
भीतर अहसासों का चौरा दरका।
खेल हैं, खिलौने हैं,
किसके संग करूं कहो
फिर सग्गे-मित्तियां।