बात / हरे प्रकाश उपाध्याय

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बात

ज़रा सी बात थी
कि बात कोई थी ही नहीं
बेबात की वह बात थी
जो बिना बात को बतंगड़ बना गयी
जिसकी अन्धड़ में लुट-पिट गये हैं हम!

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