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थी गुलाब-सी कभी गुलाबो / कुमार रवींद्र
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'बहुत दिनों के बाद आई हो
इधर गुलाबो !'
दीदी बोली
हमें याद है
हम छोटे थे
वह आती थी सोहर गाने
रोतीं थीं पड़ोस की चाची
सुन-सुनकर वे राग-तराने
उनकी बिटिया नहीं रही थी
जो दीदी की
थी हमजोली
चाची रहीं निपूती
उनकी आँखों के कोए भी सूखे
थी गुलाब-सी कभी गुलाबो
उसके बाल हुए हैं रूखे
आँखें उसकी बुझीं-बुझीं अब
जो करतीं थीं
कभी ठिठोली
अबके भाभी की
जचगी पर
अम्मा ने उसको बुलवाया
बार-बार कहने पर ही कल
गीत पुराना उसने गाया
कई बरस के बाद किसी ने
थी पड़ोस की
खिड़की खोली