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सच में सजनी / कुमार रवींद्र

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सच में, सजनी
छूमंतर हो गए इन दिनों
               ख़ुशियों वाले दिन

यानी बच्चों का हँसना
चिड़ियों का ख़ूब चहकना दिन-भर
कभी चुलबुली बरखा में
कुछ देर भीगना बाहर-भीतर

आँगन-दालानों में
अब हैं नहीं दीखते
             वे पिछले धौताले दिन

रोज़ तुम्हारा कनखी से बातें करना
सब से छिपकर
और बाँचना होंठों-होंठों में ही
मीठे ढाई आखर

मुश्किल यह है
यादों में अब भी रहते हैं
            रसभीगे मतवाले दिन

बरस-दर-बरस
इन्हीं दिनों
बस्ती में फगुआ बौराता है
रंगों की फुहार में
सब का आपा जैसे खो जाता है

तुम्हें दिखे क्या
वे आवारा शोख़
         गले में मफ़लर डाले दिन