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काश वही रहता / कुमार रवींद्र

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हम छोटे थे
तब सपने भी छोटे थे
           काश, वही रहता

तितली-फूल-नदी-जंगल की
बातें ही थीं बस
परियों के किस्सों में ही
तब थे बौने-राक्षस

पता हमें था
किन चट्टानों से होकर
          झरना है बहता

वक़्त हुआ वैरी
उसको यह रास नहीं आया
गुंबद-मीनारों का जादू
उसने फैलाया

सपने ऊँचे
और बड़े हों
    नया ज़माना है यह कहता

पीढ़ी-दर-पीढ़ी
हमने आकाशों को नापा
बित्ता-भर जो बची धूप
उसको भी कल ढाँपा

आँगन के
तुलसी चौरे को हमने देखा
            तिल-तिल ढहता