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सुनो अंदर की लहर भी / कुमार रवींद्र

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'और यह सागर
यहाँ से लौटकर जाता कहाँ है'

पास बैठे एक बच्चे ने
प्रश्न पूछा था अचानक
अजनबी मैं-
क्या बताता
रह गया था सिर्फ़ भौंचक

कह न पाया -
'यह किनारा सिंधु का भीतर यहाँ है'

'लहर सीने में उमगती जो
है सनातन वही सागर'
एक ऊँची लहर फिर
चट्टान से टकराई है आकर

उठा बच्चा
वह गया है दौड़कर मंदिर जहाँ है

आई है आवाज़ घंटों की
शंख-धुन भी दी सुनाई
किसी मछुए ने उमगकर
दूर वंशी है बजाई

सुनो, अंदर की
लहर भी दौड़कर पहुँची वहाँ है