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गीत के अंतरा-सी लड़की / कुमार रवींद्र
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और वह जो
अभी गुज़री है इधर से
ज़रा-सी लड़की
नौकरानी है पड़ोसी की
वहीं गोबर थापती है
आँसुओं से वह नहाती
कभी थरथर काँपती है
रात सिसकी
सुनी उसकी
भाई, वह है धरा-सी लड़की
कभी घर के सामने से
वह निकलती गुनगुनाती
देख लो उसकी तरफ़ तो
वह अचानक सहम जाती
ज़रा हँसती तो
वही लगती
हाँ, किसी अप्सरा-सी लड़की
एक दिन देखा उसे
वह किसी बच्चे से खड़ी
बतिया रही थी
आँख से उसकी अचानक
नेह की दरिया बही थी
उन क्षणों में
हो रही थी
गीत के अंतरा-सी लड़की