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थकी साँसें पूछती हैं / कुमार रवींद्र

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ख़बर है
कि एक बूढ़ा हिरन आया है अवध में

सुना, उसका बदन है
पूरा सुनहरा
और उसकी आँख में हीरे जड़े हैं
साथ उसके एक साधू
देख जिसको
लोग अचरज में पड़े हैं

नए सपने
रक्षकुल के वही लाया है अवध में

कौन उनकी चाल बूझे
युगों पहले रामजी
सरयू समाए
और सारे मंदिरों में
हैं अपाहिज
ढाई आखर जंग-खाए

कहाँ जाएँ
यह हिरन घर-घर समाया है अवध में

एक सोने का महालय
बीच-नगरी
हवा में लटका हुआ है
सोन-पिंजरे में
वहीं पर क़ैद
अँधा एक बौराया सुआ है

रत रहा वह -
क्या अज़ब आनंद छाया है अवध में