भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उसकी हँसी / आर. चेतनक्रांति
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:46, 27 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आर. चेतनक्रांति }} एक मर्द हँसा हँसा वह छत पर खड़ा होकर ...)
एक मर्द हँसा
हँसा वह छत पर खड़ा होकर
छाती से बनियान हटाकर
फिर उसने एक टाँग निकाली
और उसे मुंडेर पर रखकर फिर हँसा
हँसा एक मर्द
मुट्ठियों से जाँघें ठोंकते हुए एक मर्द हँसा
उसने हवा खींची
गाल फुलाए और
आँखों से दूर तक देखा
फिर हँसा
हँसा वह मर्द
मुट्ठियाँ भींचकर उसने कुछ कहा
और फिर हँसा
सूरज डूब रहा था धरती उदास थी ।