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सम्बंध / त्रिपुरारि कुमार शर्मा

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झुलस रहा है मेरे जिस्म का कोना-कोना

रूह को आग लग गई जैसे

कुछ दिनों से दिन-रात मेरी आंखों में

कोई तकलीफ बह रह रही है धीरे-धीरे

सारे सम्बन्ध पक रहे हैं अभी

मुझको इतनी-सी फ़िक्र रहती है

अलग न हो जाए हर्फ़ से कोई नुक्ता

ख़त लिफाफे में गर रहे तो अच्छा है ...