भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

टूटी हुई नज़र / त्रिपुरारि कुमार शर्मा

Kavita Kosh से
Tripurari Kumar Sharma (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:26, 25 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: मैं देख रहा हूँ कुछ दिनों से कि एक टूटी हुई नज़र आँखों के उदास आँग…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं देख रहा हूँ कुछ दिनों से

कि एक टूटी हुई नज़र

आँखों के उदास आँगन में

आकर गिरती है बारहा

दरवाज़े पर खड़े दरख़्त से

लटक रही है साँस की सूखी डाली

जिसके दामन में मौजूद हैं

कुछ खुशबूदार फूल और पत्तियाँ

रात के सख़्त अंधेरे में

जब बीनाई बेवफा हो जाती है

और हम खुद को

सिर्फ महसूस कर पाते हैं

तब एहसास का एक टूकड़ा

अपनी आहों में मुझे भर कर

लबों से थूक देता है

तक़लीफ का तकिया

छाती से चिपका कर

सदियों से रूठी नींद को

मनाने की नाकाम कोशिश करता हूँ

इस उम्मीद के साथ

कि नज़र लौट कर नहीं आये

रूह सहमी-सी खड़ी है

उफ़क़ पर सवेरा आने ही वाला है

चाँद और ज़मीन के दर्मियान

अब ज़्यादा फ़ासला नहीं बचा

इससे पहले कि

चाँदनी मेरे जिस्म को छू ले

और मैं ज़ख़्म-ज़ख़्म हो जाऊँ

देखना चाहता हूँ

कि एक टूटी हुई नज़र

आँखों के उदास आँगन में

कैसे आकर गिरती है ?