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रैनबसेरा / हरीश करमचंदाणी
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दिन भर के थके पावों
ठिठुरती देह
और पेट की दकती आग के साथ जब मैंने प्रवेश किया
रैनबसेरा चिढा रहा था मेरा मुहँ
यह रही तुम्हारी दरी
यह रहा तुम्हारा कम्बल
यह रहा तुम्हारा आज का कोना
बिछाओ ,लेटो और सो जाओ
हाँ ,जबकि उनकी साजिश थी
मैं भी सो सो जाऊँ
भूख ने मुझे जगाये रखा