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गावैं बिबुध बिमल बर बानी / तुलसीदास

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जैतश्री

गावैं बिबुध बिमल बर बानी |
भुवन-कोटि-कल्यान-कन्द जो, जायो पूत कौसिला रानी ||
मास, पाख, तिति, बार, नखत, ग्रह, जोग, लगन सुभ ठानी |
जल-थल-गगन प्रसन्न साधु-मन, दस दिसि हिय हुलसानी ||
बरषत सुमन, बधाव नगर-नभ, हरष न जात बखानी |
ज्यों हुलास रनिवास नरेसहि, त्यों जनपद रजधानी ||
अमर, नाग, मुनि, मनुज सपरिजन बिगतबिषाद-गलानी |
मिलेहि माँझ रावन रजनीचर लङ्क सङ्क अकुलानी ||
देव-पितर, गुरु-बिप्र पूजि नृप दिये दान रुचि जानी |
मुनि-बनिता, पुरनारि, सुआसिनि सहस भाँति सनमानी ||
पाइ अघाइ असीसत निकसत जाचक-जन भए दानी |
"यों प्रसन्न कैकयी सुमित्रहि होउ महेस-भवानी ||
दिन दूसरे भूप-भामिनि दोउ भईं सुमङ्गल-खानी |
भयो सोहिलो सोहिले मो जनु सृष्टि सोहिले-सानी ||
गावत-नाचत, मो मन भावत, सुख सों अवध अधिकानी |
देत-लेत, पहिरत-पहिरावत प्रजा प्रमोद-अघानी ||
गान-निसान-कुलाहल-कौतुक देखत दुनी सिहानी |
हरि बिरञ्चि-हर-पुर सोभा कुलि कोसलपुरी लोभानी ||
आनँद-अवनि, राजरानी सब माँगहु कोखि जुड़ानी |
आसिष दै दै सराहहिं सादर उमा-रमा-ब्रह्मानी ||
बिभव-बिलास-बाढ़ि दसरथकी देखि न जिनहिं सोहानी |
कीरति, कुसल, भूति, जय, ऋधि-सिधि तिन्हपर सबै कोहानी ||
छठी-बारहौं लोक-बेद-बिधि करि सुबिधान बिधानी |
राम-लषन-रिपुदवन-भरत धरे नाम ललित गुर ग्यानी ||
सुकृत-सुमन तिल-मोद बासि बिधि जतन-जन्त्र भरि घानी |
सुख-सनेह सब दिये दसरथहि खरि खलेल थिर-थानी ||
अनुदिन उदय-उछाह, उमग जग, घर-घर अवध कहानी |
तुलसी राम-जनम-जस गावत सो समाज उर आनी ||