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विधा / हरीश करमचंदाणी

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वह सच कह रहा था
लोगों ने कहा कहानी
वह रो ही पड़ा
लोगो ने बताया नाटक
वह चुप रहा
लोगो ने समझी कविता

इस बार लोग गलत न थे