जाने कितने बिनायक सेन और चाहिए / प्रतिभा कटियार
हमें फख़्र है
तुम्हारे चुनाव पर साथी
कि तुमने चुनी
ऊबड़-खाबड़
पथरीली राह ।
हमें ख़ुशी है कि
तुमने नहीं मानी हार
और किया वही,
जो ज़रूरी था
किया जाना ।
तुम्हें सज़ा देने के बहाने
एक बार फिर
बेनकाब हुई
न्याय-व्यवस्था ।
जागी एक उम्मीद कि
शायद इस बार
जाग ही जाएँ
सोती हुई कौमें ।
तुम्हें दुःख नहीं है सज़ा का
जानते हैं हम,
तुमने तो जान-बूझकर
चुना था यही जीवन.
दुःख हमें भी नहीं है
क्योंकि जानते हैं हम भी
सच बोलने का
क्या होता रहा है अंजाम
सुकरात और ईसा के ज़माने से ।
हमें तो आती है शर्म
कि लोकतंत्र में
जहाँ जनता ही है असल ताक़त
जनता ही कितनी बेपरवाह है
इस सबसे ।
न जाने कितने बलिदान
माँगती है जनता
एकजुट होने के लिए,
एक स्वर में
निरंकुश सत्ता के ख़िलाफ़
बिगुल बजाने के लिए,
खोलने के लिए मोर्चा
न जाने कितने बिनायक सेन
अभी और चाहिए ।