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गदहे गावें गान/ शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान

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उल्लू बैठे पढ़ें फारसी
गदहे गावें गान,
क्या होगा फिर तेरा मेरे
प्यारे हिन्दुस्तान ?
 
चिड़ियाघर की पहरेदारी
बाज़ों ने पाई,
रंगे सियारों के हिस्से में
राजसभा आई,
घायल श्वेत कबूतर, चीलें,
भरती फिरें उड़ान ।
 
ताल किनारे बसी हुई है
बगुलों की बस्ती,
बीन-बीन खा रहे मछलियाँ
काट रहे मस्ती,
हंसों को उपदेश दे रहे
कौवे चढ़े मचान ।
 
शाख-शाख पर लगे हुए हैं
बर्रो के छत्ते,
हिलना डुलना भूल गए हैं,
पीपल के पत्ते,
बाजीगर थोथी बातों के
घोषित हुए महान ।
 
क्या होगा फिर तेरा मेरे
प्यारे हिन्दुस्तान ?