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सुबहों पर धुँध भरे / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान
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सुबहों पर धुँध भरे
मौसम का राज है
लगता है वक़्त आज
हमसे नाराज़ है
सुविधा में डूबे हैं
किरनों के काफ़िले
धूप और धरती के
बीच बढ़े फ़ासले
नदिया भी बूँद बूँद
जल को मोहताज है
बरगद की शाखों पर
चीलों का वास है
दिशा-दिशा स्याह हुई
अंधा आकाश है
पनघट की ईट-ईंट
हुई दगाबाज है
चन्दन ने पहन लिए
जाने कब बघनखे
गिद्ध-भोज में शामिल
मलमल के अँगरखे
पैने नाखूनों के शीश
रखा ताज है
सुबहों पर धुँध भरे
मौसम का राज है