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परत पद-पङ्कज ऋषि-रवनी |
भई है प्रगट अति दिब्य देह धरि मानो त्रिभुवन-छबि-छवनी ||

देखि बड़ो आचरज, पुलकि तनु कहति मुदित मुनि-भवनी |
जो चलिहैं रघुनाथ पयादेहि, सिला न रहिहि अवनी ||

परसि जो पाँय पुनीत सुरसरी सोहै तीनि-गवनी |
तुलसिदास तेहि चरन-रेनुकी महिमा कहै मति कवनी ||