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ए कौन कहाँतें आए ?
नील-पीत पाथोज-बरन, मन-हरन, सुभाय सुहाए ||
मुनि सुत किधौं भूप-बालक, किधौं ब्रह्म-जीव जग जाए |
रुप जलधिके रतन, सुछबि-तिय-लोचन ललित ललाए ||
किधौं रबि-सुवन, मदन-ऋतुपति, किधौं हरि-हर बेष बनाए |
किधौं आपने सुकृत-सुरतरुके सुफल रावरेहि पाए ||
भए बिदेह बिदेह नेहबस देहदसा बिसराए |
पुलक गात, न समात हरष हिय, सलिल सुलोचन छाए ||
जनक-बचन मृदु मञ्जु मधु-भरे भगति कौसिकहि भाए |
तुलसी अति आनन्द उमगि उर राम लषन गुन गाए ||