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उस अहसास के बारे में / पवन करण

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घर से दूर जाते समय तुम्हारे होंठों पर

मैं जो एक चुम्बन छोड़ आया हूँ

मेरे लौट आने तक उसका अहसास

उन पर जस-का-तस रहेगा प्रिय


तुम चाहे कितने भी ज़ोर से

रगड़-रगड़ कर धोना उन्हें,

चाहे सिगड़ी में आग बढ़ाने

मारना ज़ोर-ज़ोर से फूँक

या उन्हें रंग डालना परत दर परत

लेकिन वह हठी होंठों से हटेगा नहीं


मैं वहाँ रहते हुए तुम्हें करूँगा

हर रोज़ टेलिफ़ोन, पूछूँगा तुम्हारे

और बच्चों के बारे में

और पूछूँगा उस अहसास के बारे में

जो मैं तुम्हारे होंठों पर आया हूँ छोड़


उतने दिन जितने मैं रहूँगा

यहाँ तुमसे दूर, तुम्हारे पास

तमाम चीज़ों के बीच--

महसूस करने के लिए मुझे

होंठों पर

विश्वास की तरह होगा यह