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रंग डालें बासन्ती / अलका सिन्हा
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अबकी ऐसे फाग मनाओ
दीवारों पर रंग लगाओ
रंग भरी भीगी दीवारें
महक उठें सोंधी दीवारें
नरम पड़ी गीले रंगों से
जहाँ-तहाँ टूटें दीवारें ।
दीवारें घर के भीतर की
दीवारें मंदिर-मस्जिद की
दीवारें झोंपड़-महलों की
दीवारें मानस-मानस की
रंग डालें बासंती ।
बरसे अबकी इतना रंग
बह जाएँ गलियारे तंग
दीवारों से राह बने
आने का हो आमंत्रण ।
दीवारें घर को जोड़ें
घर में दीवारें तोड़ें
रंग भरी दीवारों से
अबकी हम भी गले मिलें
दीवारों के गीले रंग
हमको भिगा-भिगा कर के
रंग डालें बासंती ।