भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीतावली पद 101 से 110 तक / पृष्ठ 4
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:56, 29 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास |संग्रह= गीतावली/ तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} [[Category…)
104
राग केदारा
मनमें मञ्जु मनोरथ हो, री !
सो हर-गौरि-प्रसाद एकतें, कौसिक, कृपा चौगुनो भो, री !||
पन-परिताप, चाप-चिन्ता निसि, सोच-सकोच-तिमिर नहिं थोरी |
रबिकुल-रबि अवलोकि सभा-सर हितचित-बारिज-बन बिकसोरी ||
कुँवर-कुँवरि सब मङ्गल मूरति, नृप दोउ धरमधुरधर धोरी |
राजसमाज भूरि-भागी, जिन लोचन लाहु लह्यो एक ठौरी ||
ब्याह-उछाह राम-सीताको सुकृत सकेलि बिरञ्चि रच्यो, री |
तुलसिदास जानै सोइ यह सुख जेहि उर बसति मनोहर जोरी ||