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रात भर पानी बरसता / मुकुट बिहारी सरोज

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रात भर पानी बरसता और सारे दिन अंगारे ।
अब तुम्ही बोलो कि कोई ज़िंदगी कैसे गुज़ारे ?

बेवज़ह सब लोग भागे जा रहे हैं,
देखने में ख़ूब आगे जा रहे हैं,
किन्तु मैले हैं बहुत अंतःकरण से,
मूलतः बदले हुए हैं आचरण से,
रह गए हैं बात वाले लोग थोड़े,
और अब तूफ़ान का मुँह कौन मोडे,
नाव डाँवाडोल है ऐसी कि कोई क्या उबारे,
जब डुबाने पर तुले ही हो किनारे पर किनारे ।

है अनादर की अवस्था में पसीना
इसलिए गड़ता नहीं कोई नगीना,
साँस का आवागमन बदला हुआ है,
एक क्यारी क्या चमन बदला हुआ है
नागरिकता दी नहीं जाती सृजन को,
अश्रु मिलते है तृषा के आचमन को,
एक उत्तर के लिए हल हो रहे हैं ढेर सारे ।
और जिनके पास हल है बंद हैं उनके किवारे ।