बिना बहाने - नदी मुहाने / माया मृग
बिना बहाने-नदी मुहाने
बड़ी भीड़ है,
कई अकेले मेरे जैसे,
खड़े अकेले सोच रहे है,
उनमें मैं हूँ, खड़ा अकेला
सोच रहा हूँ,
कारण क्या है, वजह तो होगी
कुछ आने की !
नही अकेली-नदी दुकेली,
नदी स-केलि बहती जाती,
कुछ ना कहती, बहती रहती,
बहती रहती-बहती रहती।
कब से कब तक ....?
तब से अब तक
दूर कहीं से ये आती है,
जान कहाँ बही जाती है
नदी अकेली !
नही मुहाने कुछ नावें हैं,
घाट बंधी है
चप्पु भी है, रज्जु भी हैं !
शायद नाव चलानी होगी,
धारा बीच ले जानी होगी
हो सकता है ऐसा ही हो,
हो सकता है ऐसा ना हो
दूर दूसरे तट पर शायद,
कोई मुझे देखता होगा,
ओ मतवाले, आजा-आजा !
ऐसा कहकर टेरता होगा।
शायद मुझे वहां जाना है,
यह तट छोड़, वह पाना है
दूर दूसरा तट है शायद।
गड्डमड्ड है कुछ साफ नहीं हैं,
यह तट, वह तट और ये धारा,
चप्पु-रज्जु, नाव-किनारा !
एक अकेला, कई अकेले,
नदी अकेली-नदी दुकेली !
सोच रहे हैं, देख रहे हैं,
यह बहती है, चुप रहती है !
मैं भी बह लूं-या थिर रह लूं,
वजह तो होगी कुछ आने की
बिना बहाने-नही मुहाने
बड़ी भीड़ है - !