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गीतावली पद 81 से 90 तक/पृष्ठ 2
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मिलो बरु सुन्दर सुन्दरि सीतहि लायकु
साँवरो सुभग, शोभाहूँको परम सिङ्गारु |
मनहूको मन मोहै, उपमाको को है?
सोहै सुखमासागर सङ्ग अनुज राजकुमारु ||
ललित सकल अंग, तनु धरे कै अनङ्ग,
नैननिको फल कैन्धौं, सियको सुकृत-सारु |
सरद-सुधा-सदन-छबिहि निन्दै बदन,
अरुन आयत नवनलिन-लोचन चारु ||
जनक-मनकी रीति जानि बिरहित प्रीति,
ऐसी औ मूरति देखे रह्यो पहिलो बिचारु |
तुलसी नृपहि ऐसो कहि न बुझावै कोउ,
पन औ कुँअर दोऊ प्रेमकी तुला धौं तारु||