भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीतावली पद 81 से 90 तक/ पृष्ठ 8
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:11, 31 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास |संग्रह= गीतावली/ तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} [[Category…)
(88)
ऋषिराज राजा आजु जनक समान को?
आपु यहि भाँति प्रीति सहित सराहित,
रागी औ बिरागी बड़भागी ऐसो आन को?।1।
भूमि -भोग करत अनुभवत जोग-सुख,
मुनि-हर-पद-नेहु, गेह बसि भौ बिदेह,
अगुन-सगुन-प्रभु-भजन-सयान को?।2।
कहनि रहनि एक, बिरति बिबेक नीति,
बेद-बुध-संमत पथीन निरबानको?
गाँठि बिनु गुनकी कठिन जड़-चेतनकी,
छोरी अनायास, साधु सोधक अपान को।3।
सुनि रघुबीरकी बचन-रचनाकी रीति,
भयो मिथिलेस मानो दीपक बिहानको।
मिट्यो महामोह जीको, छूट्यो पोच सोच सीको,
जान्यो अवतार भयो पुरूष पुरानको।4।
सभा, नृप, गुर, नर-नारि पुर, नभ सुर,
सब चितवन मुख करूनानिधानको।
एकै एक कहत प्रगट एक प्रेम-बस,
त्ुलसीस तोरिये सरासन इसानको।5।