भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीतावली पद 91 से 100 तक/पृष्ठ 10
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:58, 31 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास |संग्रह= गीतावली/ तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} [[Category…)
(100)
ऋषि नृप-सीस ठगौरी-सी डारी।
क्ुलगुर, सचिव, निपुन नेवनि अवरेब न समुझि सुधारी।1।
सिरिस-सुमन-सुकुमार कुँवर दोउ, सूर सरोष सुरारी।
पठए बिनहि सहाय पयादेहि केलि-बान-धनुधारी।2।
अति सनेह-कातरि माता कहै, सुनि सखि! बचन दुखारी।
बादि बीर -जननी-जीवन जग, छत्रि -जाति- गति भारी।3।
जो कहिहै फिरे राम-लखन घर करि मुनिमख-रखवारी।
सो तुलसी प्रिय मोहिं लागिहै ज्यों सुभाय सुत चारी।4।