भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीतावली अयोध्याकाण्ड पद 26 से 35/पृष्ठ 7
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:37, 4 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास |संग्रह= गीतावली/ तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} [[Category…)
(32)
रागकेदारा
जेहि जेहि मग सिय-राम-लखन गए,
तहँ-तहँ नर-नारि बिनु छर छरिगे |
निरखि निकाई-अधिकाई बिथकित भए,
बच बिय-नैन-सर सोभा-सुधा भरिगे ||
जोते बिनु, बए बिनु, निफन निराए बिनु,
सुकृत-सुखेत सुख-सालि फूलि-फरिगे |
मुनिहु मनोरथको अगम अलभ्य लाभ,
सुगम सो राम लघु लोगनिको करिगे ||
लालची, कौड़ीके कूर पारस परे हैं पाले,
जानत न को हैं, कहा कीबो सो बिसरिगे |
बुधि न बिचार, न बिगार न सुधार सुधि,
देह-गेह-नेह-नाते मनसे निसरिगे ||
बरषि सुमन सुर हरषि हरषि कहैं,
अनायास भवनिधि नीच नीके तरिगे|
सो सनेह-समौ सुमिरि तुलसीहूके-से
भली भाँति भले पैन्त, भले पाँसे परिगे ||