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सुनी मैं सखि! मङ्गल चाह सुहाई |
सुभ पत्रिका निषातराजकी आजु भरत पहँ आई ||
कुँवर सो कुसल-छेम अलि! तेहि पल कुलगुर कहँ पहुँचाई |
गुर कृपालु सम्भ्रम पुर घर घर सादर सबहि सुनाई ||
बधि बिराध, सुर-साधु सुखी करि, ऋषि-सिख-आसिष पाई |
कुम्भजु-सिष्य समेत सङ्ग सिय, मुदित चले दोउ भाई ||
बीच बिन्ध्य रेवा सुपास थल बसे हैं परन-गृह छाई |
पन्थ-कथा रघुनाथ पथिककी तुलसिदास सुनि गाई ||