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आफू खाय भांग मसकावे / गोरखनाथ
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आफू खाय भांग मसकावे
ता मैं अकलि कहाँ तै आवे ।
चढ़ताँ पित्त उतरताँ बाई,
ताते गोरख भाँगि न षाई ।।
मिंदर छाडे कुटी बँधावै,
त्यागे माया और मँगावै ।
सुन्दरि छाडे नकटी बासै
तातें गोरख अलगे न्यासै ।।