भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सच है / नील कमल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:01, 6 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नील कमल |संग्रह=हाथ सुंदर लगते हैं / नील कमल }} {{KKCatKa…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नहीं
यह ग़लत है
कि मैं समुद्र होना चाहता हूँ

ज्वार-भाटे की राजनीति
मैं नहीं चाहता

हाँ
यह सच है
कि समुद्र के बीच
ठीक उसके छाती पर
मैं टापू-सा खड़ा होना चाहता हूँ