भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आँच / भगवत रावत

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:31, 29 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भगवत रावत |संग्रह=दी हुई दुनिया / भगवत रावत }} आँच सिर्फ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


आँच सिर्फ़ आँच होती है

न कोई दहकती भट्टी

न कोई लपट

न कोई जलता हुआ जंगल


किसी अलाव की सी आँच की रोशनी में

चेहरे

दिन की रोशनी से भी ज़्यादा

पहचाने जाते हैं