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गीतावली अरण्यकाण्ड पद 16 से 20/पृष्ठ 3

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(17) (1)

प्रानप्रिय पाहुने ऐहैं राम-लषन मेरे आजु |
जानत जन-जियकी मृदु चित राम गरीबनिवाज ||

मृदु चित गरीबनिवाज आजु बिराजिहैं गृह आइकै |
ब्रह्मादि सङ्कर-गौरि पूजित पूजिहौं अब जाइकै ||

लहि नाथ हौं रघुनाथ-बानो पतितपावन पाइकै |
दुहु ओर लाहु अघाइ तुलसी तीसरेहु गुन गाइकै ||