जब खेलने आये बच्चे / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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जब खेलने आए बच्चे-
हवा चली जी , हवा चली
तेज चली जी ,तेज चली
टूटे पत्ते , छूटे पत्ते ।
बिखरे पत्ते ,पत्ते –पत्ते
पत्ते दौड़े ,आगे-आगे
पीछे –पीछे ,हम भी दौड़े
कभी इधर को ,कभी उधर को
नहीं पकड़ में ,वे आ पाए
हम भी हारे , वे भी हारे ।
आए पास में चुपके- चुपके
अब पकड़ में आए पत्ते ;
सबने सभी उठाए पत्ते ।
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हरी पत्तियाँ / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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हरी –हरी पत्तियाँ ।
खूब छाँव से भरी पत्तियाँ ॥
एक पत्ती टूट गई ।
छाँव झटपट रूठ गई ॥
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अक्कड़-बक्कड़ / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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अक्कड़-बक्कड़ बम्बे बो
आसमान में बादल सौ ।
सौ बादल हैं प्यारे
रंग हैं जिनके न्यारे ।
हर बादल की भेड़ें सौ
हर भेड़ के रंग हैं दो ।
भेड़ें दौड़ लगाती हैं
नहीं पकड़ में आती हैं ।
बादल थककर चूर हुआ
रोने को मज़बूर हुआ ।
आँसू धरती पर आए
नन्हें पौधे हरषाए ।
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