भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीतावली लङ्काकाण्ड पद 11 से 15 तक/पृष्ठ 4
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:45, 10 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास |संग्रह= गीतावली/ तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} [[Category…)
(14)
बिनय सुनायबी परि पाय |
कहौं कहा, कपीस! तुम्ह सुचि, सुमति, सुहृद सुभाय ||
स्वामि-सङ्कट-हेतु हौं जड़ जननि जनम्यो जाय |
समौ पाइ, कहाइ सेवक घट्यो तौ न सहाय ||
कहत सिथिल सनेह भो, जनु धीर घायल घाय |
भरत-गति लखि मातु सब रहि ज्यौं गुड़ी बिनु बाय ||
भेण्ट कहि कहिबो, कह्यो यों कठिन-मानस माय |
"लाल! लोने लषन-सहित सुललित लागत नाँय ||
देखि बन्धु-सनेह, अंब सुभाउ, लषन-कुठाय |
तपत तुलसी तरनि-त्रासुक एहि नये तिहुँ ताय ||