भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सहमी कचौड़ी पूड़ियाँ / रविशंकर पाण्डेय

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:45, 10 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रविशंकर पाण्डेय |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <poem> '''सहमी कचौड़…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सहमी कचौड़ी पूड़ियाँ

प्लेट पर
चल रहे चाकू
और काँटे छूरियाँ,
बढ़ गयी है
आज मुँह से
कौर की कुछ दूरियाँ!

बढ़ा जबसे चलन
खाने में
चुभोने काटने का,
खो गया जुमला
न जाने कहाँ
अँगुली चाटने काय
कौन पँूछे मौन
वैष्णव जनों की मजबूरियाँ!

सजा करते थे कभी
क्या खूब
दस्तरखाना अपने,
बैठकर थे जीमते
जीभर कभी
मेहमान अपनेय
आज चौके पर
जमें हैं
चाइना मंचूरिया!

अगर सोचो
बात यह है बड़ी
पर
दिख रही छोटी,
ढूँढ़ते रह जाओगे
कल थाल में
तुम दाल रोटीय
देख खस्ता हाल यह
सहमीं कचौड़ी पूड़ियाँ!