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हँसा कीजिए / रमेश तैलंग
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रोज हर बात पर न कुढ़ा कीजिए।
खिल उठेगा ये चेहरा, हँसा कीजिए।
फालतू की ये मनहूसियत छोड़िए,
जो रुलाए किसी को वो लत छोड़िए,
चुटकुले कुछ सुनाया-सुना कीजिए।
खिल उठेगा ये चेहरा, हँसा कीजिए।
क्या पता कल हँसी के भी पैसे लगें,
चिड़चिड़े बच्चे बूढ़ों जैसे लगें।
मुस्कराहट को झटपट बुला लीजिए।
खिल उठेगा ये चेहरा, हँसा कीजिए।
काम धंधे लगे ही रहेंगे यहॉं,
लोग हैं ढेर बातें कहेंगे यहाँ,
आप बस अपने मन को मना लीजिए।
खिल उठेगा ये चेहरा, हँसा कीजिए।