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मिट्टी के ढेले / राजेन्द्र कुमार

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सहकर सूरज का प्रखर ताप
मिट्टी के छोटे-छोटे
कुछ ढेले-
पत्थर बन निस्पंद पड़े थे,

सहसा सुनाई दी
              किसी की पद्चाप...
बड़ी-बड़ी बूँदें आईं
घुल गए पिघल गए-
          मिट्टी के ढेले
                 आप ही आप !
          और फिर, तरल बन
            बह गए
                 चुपचाप !

पता नहीं क्यों
मन और उदास हो गया है!