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शर-शैय्या पर / राजेन्द्र कुमार
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एक बहुत बड़ा मैदान
उस मैदान में एक बहुत बड़ी भीड़
उस भीड़ में एक बहुत उदास आश्चर्य...
ख़ुशी अगर है
तो उन आँखों में टँकी है
जो अपने चेहरे के अनुपात में
बहुत
छोटे हैं
इसी मैदान के एक कोने में
उस भीड़ के / शोर की शर-शैय्या पर
लेटा है चित्त-
कोई मौन
शायद यह कोई-
नहीं है हमारा अपना