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गीतावली उत्तरकाण्ड पद 11 से 20 तक/पृष्ठ 6

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राग बिलावल

रघुबर-रूप बिलोकु, नेकु मन |
सकल लोक-लोचन-सुखदायक, नखसिख सुभग स्यामसुन्दर तन ||

चारु चरन-तल-चिन्ह चारि फल चारि देत परचारि जानि जन |
राजत नख जनु कमल-दलनिपर अरुन-प्रभा-रञ्जित तुषार-कन ||

जङ्घा-जानु आनु कदली उर, कटि किङ्किनि, पटपीत सुहावन |
रुचिर निषङ्ग, नाभि, रोमावलि, त्रिबलि, बलित उपमा कछु आव न ||

भृगुपद-चिन्ह, पदिक, उर सोभित, मुकुतमाल, कुङ्कुम-अनुलेपन |
मनहुँ परसपर मिलि पङ्कज-रबि प्रगट्यो निज अनुराग, सुजस घन ||

बाहु बिसाल ललित सायक-धनु, कर कङ्कन केयूर महाधन |
बिमल दुकूल-दलन दामिनि-दुति, यज्ञोपवीत लसत अति पावन ||

कम्बुग्रीव, छबि सींव, चिबुक, द्विज, अधर, कपोल, बोल, भय-मोचन |
नासिक सुभग, कृपापरिपूरन तरुन अरुन राजीव बिलोचन ||

कुटिल भ्रुकुटिबर, भाल तिलक रुचि, सुचि सुन्दरता स्रवन-बिभूषन |
मनहुँ मारि मनसिज पुरारि दिय ससिहि चाप सर-मकर अदूषन ||

कुञ्चित कच, कञ्चन-किरीट सिर, जटित ज्योतिमय बहुबिधि मनिगन |
तुलसिदास रबिकुल रबि-छबि कबि कहि न सकत सुक-सम्भु-सहसफन ||