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गीतावली उत्तरकाण्ड पद 21 से 30 तक/पृष्ठ 3
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(22).राग बसन्त
खेलत बसन्त राजाधिराज | देखत नभ कौतुक सुर-समाज ||
सोहैं सखा-अनुज रघुनाथ साथ | झोलिन्ह अबीर, पिचकारि हाथ ||
बाजहिं मृदङ्ग, डफ, ताल, बेनु | छिरकैं सुगन्ध भरे मलय-रेनु ||
उत जुबति-जूथ जानकी सङ्ग |पहिरे पट भूषन सरस रङ्ग ||
लिये छरी बेन्त सोन्धैं बिभाग | चाँचरि झूमक कहैं सरसराग ||
नूपुर-किङ्किनि-धुनि अति सोहाइ | ललना-गन जब जेहि धरैँ धाइ ||
लोचन आँजहिं फगुआ मनाइ | छाड़हिं नचाइ, हाहा कराइ ||
चढ़े खरनि बिदूषक स्वाँग साजि | करैं कूटि, निपट गई लाज भाजि ||
नर-नारि परसपर गारि देत | सुनि हँसत राम भाइन समेत ||
बरषत प्रसून बर-बिबुध-बृन्द | जय-जय दिनकर-कुल-कुमुदचन्द ||
ब्रह्मादि प्रसंसत अवध बास | गावत कलकीरति तुलसिदास ||