भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सपने / विश्वनाथप्रसाद तिवारी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:49, 12 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विश्वनाथप्रसाद तिवारी |संग्रह=बेहतर दुनिया के…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कैसे कटती हैं उनकी रातें
जो सपने नहीं देखते ?

सपने आकाश की तरह अनन्त
सपने क्षितिज की तरह अजनबी

सपने बच्चों की तरह मुलायम
सपने परियों की तरह पंख फैलाए

सपने कोहरे में सोए जंगलों की तरह
उगते दिन की तरह सपने

कहते हैं वे
अपने सपने बेच दो

क्या ख़रीदूँगा मैं
अपने सपने बेचकर ?