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बैरागी / विश्वनाथप्रसाद तिवारी

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गड़गड़ा रहे हैं बादल
घिर रहे हैं
पहाड़ों को, पेड़ों को
घेर रहे हैं बादल

अपने धानों के खेत बचा बैरागी

ख़ूँखार हो गया है आसमान
तुम्हारी नदी बेचैन हो रही है

अपनी नाव सँभाल बैरागी

चारों ओर हो गया है अँधेरा
हवा झपट्टे मार रही है

अपनी झोंपड़ी बचा बैरागी

तुम्हारे बच्चे तुम्हारी राह देख रहे हैं
उन्हें राह दिखा बैरागी ।