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फूल और उम्मीद / गोरख पाण्डेय

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हमारी यादों में छटपटाते हैं

कारीगर के कटे हाथ

सच पर कटी ज़ुबानें चीखती हैं हमारी यादों में

हमारी यादों में तड़पता है

दीवारों में चिना हुआ

प्यार ।


अत्याचारी के साथ लगातार

होने वाली मुठभेड़ों से

भरे हैं हमारे अनुभव ।


यहीं पर

एक बूढ़ा माली

हमारे मृत्युग्रस्त सपनों में

फूल और उम्मीद

रख जाता है ।


(रचनाकाल : 1980)